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“मंजिल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो, रास्ता हमेशा पैरों के नीचे ही होता है

बारिश में भावनाओं की अक्सर बह जाती हूं


बारिश में भावनाओं की,अक्सर मैं बह जाती हूँ

इसलिए ही शायद ,मैं अकेली रह जाती हूँ।


जब भी दिखे कोई मुश्किल में,मैं भागी जाती हूँ

मतलब निकाल कर हर कोई,छोड़ देता है अक्सर

मैं वहां से चलकर,घर तक मुश्किल से आती हूँ

बारिश में भावनाओं की............


जब देखूँ किसी का होता बुरा,ना सह पाती हूँ

उसको बचाने की खातिर,मैं दौड़ी जाती हूँ

भले के बदले मिलती बुराई,मूँह लटका घर आती हूँ

बारिश में भावनाओं की..........


मुझको तो हर इंसान,अपने जैसा लगता है

इसी चक्कर में मैं,हर बार ही धोखा खाती हूँ

लेकर यही खिताब मैं वापिस लौट आती हूँ

बारिश में भावनाओं की.........


कोई भला कहे मुझे या बुरा कहता रहे

ये मेरे असूल हैं,मैं उनपर चलती जाती हूँ

सच मानो अपने अंदर खुशियों की बारिश पाती हूँ

बारिश में भावनाओं की............।


   करमजीत कौर,शहर-मलोट

        जिला-श्री मुक्तसर साहिब,पंजाब


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