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“मंजिल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो, रास्ता हमेशा पैरों के नीचे ही होता है

बड़ी हम दर्द दुनिया है, बेहकावों में मत आना ,

 


बड़ी हम दर्द दुनिया है, बेहकावों में मत आना ,


छुपा लेना कहीं खुदको, निगाहों में मत आना ।


तुम्हें देखो तो चैन नहीं, न देखो तो सुकून नहीं,


गुज़ारिश है यही के तू, मेरे ख्वाबों में मत आना ।


हैं खिलते फूल बागों में, तुम्हीं से हुस्न लेकर के,


हया से सुर्ख गुलाबों की, क्यारियों में मत आना ।


कसम खायी थी हमने साथ, जीने और मरने की,


बन कर याद तुम बिखरी, किताबों में मत आना ।


चांद हो तुम फलक पे, चांदनी ही रहना ‘मिलन’,


सूरज की ले कर रोशनी, सितारों में मत आना ।।


मिलन “मोनी” 

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