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“मंजिल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो, रास्ता हमेशा पैरों के नीचे ही होता है

सबसे बड़ा कौन ?


एक बार नारद मुनि के मन में विचार आया कि यह पता लगाया जाए कि संसार में सबसे बड़ा और महान कौन है ? नारद मुनि ने काफी सोच-विचार किया, लेकिन किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच सके । अन्त में हारकर वह देवताओं के गुरु ब्रहस्पति जी के पास पहुंचे। ब्रहस्पति जी को नमस्कार करने के बाद नारद मुनि ने उनके सामने अपनी शंका रखते हुए कहा, "गुरुदेव ! कृपा करके यह बताइए कि संसार में सबसे बड़ा और सबसे महान कौन है ?"ब्रहस्पति जी ने कुछ देर सोचा, फिर बोले, "मुनिवर! धरती पर असंख्य जीव बसते हैं । धरती सहज ही इन सबका भार उठाये हुए चल रही है । इसका विस्तार भी बहुत है।" यह कहकर ब्रहस्पति जी रुक गए। नारद मुनि ने आदर से सिर झुकाते हुए कहा, "ठीक है, गुरुदेव ! घरती ही सबसे बड़ी और महान है।" "धरती को तो समुद्र ने चारों तरफ से अपने में समाया हुआ है । समुद्र का विस्तार भी असीमित है। उसमें भी असंख्य जीव निवास करते हैं । हर दृष्टि से समुद्र धरती से बड़ा है ।" ब्रहस्पति जी ने नारद की बात काटते हुए कहा । नारद मुनि ने फिर सिर झुका दिया और बोले, "सच है, गुरुदेव ! समुद्र ही सबसे बड़ा प्रतीत होता है।" नारद नी की बात सुनकर ब्रहस्पति जी मुस्करा पड़े। फिर मुस्कराते हुए बोले, “परन्तु मुनिवर ! समुद्र का गरा पानी तो अगस्त्य ऋषि चुल्लू भर-भरकर पी गए थे। इसलिए अगस्त्य ऋषि समुद्र से बड़े हुए।" ब्रहस्पति जी की इन बातों ने नारद मुनि को उलझन में डाल दिया। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि वास्तव में गुरुदेव कहना क्या चाहते हैं। गुरुदेव जी की भेदभरी बातों में से वास्त- विकता को समझने के लिए नारद मुनि श्रद्धा से चुपचाप खड़े रहे । नारद मुनि को चुप देखकर ब्रहस्पति जी बोले, "इतने बड़े आकाश के नीचे अगस्त्य मुनि एक जुगनू के समान हैं। वैसे भी तो इस पूरे ब्रह्माण्ड को आकाश ने अपनी लपेट में ले रखा है। शलिए आकाश अगस्त्य मुनि से भी बड़ा मालूम पड़ता है।" ब्रहस्पति जी की बातें उस केले के पत्त की तरह लग रही थी, चिसकी एक परत के बाद दूसरी परत निकल आती है । नारद मुनि की शंका तो दूर क्या होनी थी, उल्टे उनके सामने और अनेकों शंकाएं खड़ी हो गयीं। वह किसी भी निर्णय पर नहीं पहुंच सके । नारद जी की मानसिक स्थिति को देखते हुए ब्रहस्पति जी मुस्करा पड़े। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए वह फिर बोले, "विष्णु जी ने जब वामन अवतार धारण किया था, तब उन्होंने एक कदम में सारी धरती को और दूसरे कदम में सारे आकाश को नाप लिया था। इसलिए भगवान विष्णु के सामने आकाश भी तुच्छ प्रतीत होता है।" ब्रहस्पति जी की उपरोक्त बात सुनकर नारद मुनि को अपनी शंका हल होते हुए दिखाई दी। उनको लगा कि गुरुदेव यह कहना चाहते हैं कि भगवान ही संसार में सबसे बड़े और महान हैं । नारद जी ने गुरुदेव को श्रद्धा और सत्कार से नमस्कार करते हुए कहा, “आपकी कृपा से मेरी शंका का हल निकल आया है। मुझे पता लग गया है कि स्वयं भगवान ही संसार में सबसे बड़े और महान हैं।" यह कहकर नारद मुनि जाने लगे। तभी ब्रहस्पति जी बोल पड़े, "लेकिन मुनिवर ! भगवान तो आप जैसे भक्तों के हृदय में निवास करते हैं। इसलिए प्रभु प्रेमी भक्त भगवान से भी बड़े माने जाएंगे।" गुरु जी की यह बात सुनकर नारद मुनि ठहर गए । ब्रहस्पति जी ने मुस्कराते हुए कहा, "इस संसार में प्रभु प्रेमी भक्त से बड़ा और महान कोई अन्य नहीं। भगवान की ओर से भी भक्त को ही बड़ा और सर्वोत्तम होने का सम्मान प्राप्त है। जिसके अन्तर में प्रभु का निवास है, वही बड़ा है ।" अपने अन्तर-मन में हर पल निगुण-सगुण ब्रह्म को बसाये रखने वाला भक्त विधि के विधान को भी बदल सकता है। ऐसे भक्त के आशीर्वाद से उसे भी प्राप्त किया जा सकता है; जो भाग्य में न लिखा हो।


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