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“मंजिल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो, रास्ता हमेशा पैरों के नीचे ही होता है

सुखी होने का मंत्र


एक बार मनुष्यों के प्रतिनिधि ब्रह्मा जी के पास गए और उनसे

उन्नति करने तथा सुखी रहने का उपाय पूछा । ब्रह्मा जी ने उनको

दो थे ले देते हुए कहा, 'ये दो थले हर मनुष्य हर समय अपने कन्धों

पर लटकाए रखें । इनमें से एक थैले में अपनी बुराइयां तथा अपने

साथियों की अच्छाइयां भरते जाओ और दूसरे थैले में अपनी

अच्छाइयां तथा अपने साथियों की बुराइयां डालते जाओ।"

थैलों को लटकाने के विषय में एक विशेष आदेश देते हुए ब्रह्मा

जी ने कहा. “उन्नति तथा सुख के लिए आवश्यक है कि मनुष्य

अपनी बुराइयों तथा साथियों की अच्छाइयों वाला थैला आगे

की ओर लटकाए और साथियों की बुराइयों तथा अपनी अच्छाइयो

वाला थैला अपनी पीठ की ओर लटकाए, ताकि साथियों की बुराइयां

उसकी आंखों से ओझल रहें और अपनी बुराइयां हर समय उसकी

आंखों के सामने रहें । इसके अतिरिक्त दूसरों की अच्छाइयां हर

पल उसे दिखाई देती रहें तथा अपनी अच्छाइयां आंखों से ओझल

रहकर उसे अभिमानी होने से बचाए रखें।"

मनुष्य ने ब्रह्मा जी के आदेश का तो पालन किया, लेकिन

दुर्भाग्य से थेले लटकाते समय अधिकतर मनुष्यों से भूल हो गई।

अधिकतर मनुष्यों ने वह थैला आगे लटका लिया जिसमें उसकी

कुछेक अच्छाइयां तथा साथियों की अनेक बुराइयां भरी पड़ी थीं।

जिस थैले में साथियों की अच्छाइयां तथा मनुष्य की अपनी बुराइयां

थीं, वह उसने पीठ की ओर लटका लिया। फलस्वरूप, मनुष्य हर

समय दूसरों की बुराइयों और अपनी अच्छाइयों को देखता है,

लेकिन अपने दोषों और अन्य व्यक्तियों के गुणों पर उसकी नज़र

नहीं जाती। इसी गलती के कारण मनुष्य उन्नति के बजाए अवनति

को प्राप्त हो रहा है, सुखों के बजाए परेशानियां से घिरा रहता

काश ! हम सब अपने- अपने सम्बन्ध में इस भूल का सुधार कर

सकें । हमारे दोष हर समय हमारे सामने रहें, तभी हम उन्हें

सुधारने का प्रयास कर पाएंगे । ऐसे ही, साथियों के गुण हमे दिखाई

देते रहें, ताकि हम उनसे प्रेरणा प्राप्त करके गुणों को प्राप्त हो

सकें। यही है उन्नति की सीढ़ी, यही है सुखी होने का मन्त्र ।

 लेखक श्री भूपेंद्र बेकल

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