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“मंजिल चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो, रास्ता हमेशा पैरों के नीचे ही होता है

सिर्फ़ सोचते न रहें, करें भी


 बोधकथा


हमारे मन में कई तरह के विचार आते रहते हैं। अच्छे विचार भी और बुरे भी। विवेक से काम ले कर हम बुरे विचार पर तो अमल नहीं करते पर अगर अच्छे विचार करके भी हम सिर्फ सोचते ही रहें, अमल में न लें तो उन अच्छे विचारों से हमें कोई लाभ न होगा। अच्छे विचार करना अच्छा तो है पर अगर उन पर अमल न करें तो अच्छे विचार करना व्यर्थ रहेगा। रोटी-रोटी का विचार तो करें पर खाने का यत्न न करें तो पेट भरेगा नहीं। अपने आप में विचार तब तक निष्प्राण होता है,  जब तक कृत्य न बने और 'कृतस्य कर्मणः फलं ना कृतस्य' के अनुसार कर्म करने पर ही फल मिलता है, कर्म न करने पर नहीं। 

एक दम्पति में कहा सुनी हो गई जैसी कि पति-पत्नी में हुआ ही करती है तो दोनों में बोलचाल बन्द हो गई। पत्नी दिन भर मुंह फुलाएं रही और पति भौहें तन्नाए रहा। दूसरे दिन पति को सुबह जल्दी सूर्योदय से पहले कहीं जाना था और वह देर तक सोये रहने का आदी था जबकि पत्नी सुबह जल्दी उठने की अभ्यस्त थी जैसी कि आम तौर पर भारतीय पत्नियां सुबह जल्दी उठा करती हैं। पति को जब जल्दी उठ कर जाना होता था तो वह रात को पत्नी से कह देता था कि सुबह उसे जल्दी जगा देना पर अब तो सुबह से बोलचाल बन्द थी तो पत्नी से कहे कैसे ? बहुत सोच विचार कर उसे एक तरकीब सूझ गई। उसने एक परचे पर लिखा- 'मुझे सुबह पांच बजे जगा देना' और काग़ज़ पत्नी की तरफ़ बढ़ा दिया । पत्नी ने नाक फुलाई, पति को घूर कर देखा और काग़ज़ ले लिया। सुबह पति की आंख खुली तो चौंक पड़ा। सब तरफ़ धूप फैली हुई थी और घड़ी में सवा आठ बज रहे थे। तभी उसकी नज़र बिस्तर के पास रखी टेबल पर पड़ी। वहां एक कागज़ पेपरवेट से दबा रखा था। उसने कागज़ उठा कर देखा पत्नी की लिखावट में लिखा था- अजी पांच बज रहे हैं अब उठ भी जाओ। आपको जाना है न ?

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